भारत देश के ओडिशा राज्य के पुरी शहर से ३५ किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में कोणार्क सूर्य मन्दिर स्थित है। यह १३ वीं शताब्दी (वर्ष १२५०) का एक प्रतिष्ठित और प्रसिध्द सूर्य मंदिर है, जो चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित है। इस सूर्य मन्दिर को गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव ने बनवाया था। सन् १९८४ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। इस मन्दिर के दर्शन करने के लिए भारी संख्या में भक्त आते है। यह मन्दिर हिन्दुओं का एक पवित्र और प्रमुख धार्मिक स्थल है। कोणार्क दो शब्दों कोण और अर्क से मिलकर बना है। जहां कोण का अर्थ कोना और अर्क का अर्थ सूर्य है। दोनों को संयुक्त रूप से मिलाने पर यह सूर्य का कोना यानि कोणार्क कहा जाता है। इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि मंदिर का ऊंचा टॉवर काला दिखायी देता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास :
कोणार्क शब्द, ‘कोण’ और ‘अर्क’ शब्दों के मेल से बना है। अर्क का अर्थ होता है सूर्य, जबकि कोण का अर्थ कोने या किनारे से है। इस कोणार्क सूर्य-मन्दिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है।इसे १२३६–१२६४ ईसा पूर्व गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मन्दिर, भारत के सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है, इसे यूनेस्को द्वारा सन् १९८४ में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। कलिंग शैली में निर्मित इस मन्दिर में सूर्य देव(अर्क) को रथ के रूप में विराजमान किया गया है तथा पत्थरों को उत्कृष्ट नक्काशी के साथ उकेरा गया है। सम्पूर्ण मन्दिर स्थल को बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुये निर्मित किया गया है, जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। परन्तु वर्तमान में सातों में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है। मन्दिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते ये बारह चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है, जो अर दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं। यहाॅं पर स्थानीय लोग प्रस्तुत सूर्य-भगवान को बिरंचि-नारायण कहते थे।
कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा :
पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्बा को अपने पिता के द्वारा दिये श्राप के कारण कुष्ठ रोग हो गया था। फिर साम्बा ने कोणार्क में मित्रवन में चंद्रभागा नदी के तट पर 12 वर्षों तक तप किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य देव ने साम्बा की बीमारी को बिल्कुल ठीक कर दिया। तब साम्बा ने भगवान सूर्य देव के सम्मान में एक मन्दिर बनाने का संकल्प लिया और अगले दिन स्नान करते समय नदी में उन्हें भगवान सूर्य देव की एक मूर्ति मिली। जो विश्वकर्मा द्वारा सूर्य देव के शरीर से निकाली गई थी। साम्बा ने यह मूर्ति मित्रवन में उनके द्वारा बनाये गए मन्दिर में स्थापित कर दी। तब से यह स्थान पवित्र माना जाता है और कोणार्क के सूर्य मंदिर के रूप में जाना जाता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें :
१) इस मन्दिर के शिखर पर एक भारी चुम्बक रखा गया है और दो पत्थर लोहे की प्लेटों के द्वारा सजाये गये है। इसी चुम्बक के कारण मूर्ति हवा में तैरती हुई दिखायी देती है।
२) भगवान सूर्य देव को ऊर्जा और जीवन का प्रतीक माना जाता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर रोगों के उपचार और इच्छाओं को पूरा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
३) कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा में स्थित पांच प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। जबकि चार अन्य स्थल पुरी, भुवनेश्वर, महाविनायक और जाजपुर हैं।
४) इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार का बनाया गया है। इस रथ में 12 जोड़ी पहिए मौजूद है, जिसे 7 घोड़े रथ को खींचते हुए दिखाया गया है। यह 7 घोड़े, 7 दिन के प्रतीक हैं और 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटों को बतलाते हैं। यह भी माना जाता है कि 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक हैं। इस रथ आकार के मंदिर में 8 ताड़ियां भी हैं, जो दिन के 8 प्रहर को दर्शाते हैं। यहां की सूर्य मूर्ति को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखा गया है, इसलिए इस मंदिर में कोई भी देव मूर्ति मौजूद नहीं है। यह मंदिर समय की गति को दर्शाता है.
५) इस मन्दिर में हर दो पत्थरों के बीच में एक लोहे की चादर लगी हुई है। मन्दिर की ऊपरी मंजिल का निर्माण लोहे के बीमों के द्वारा किया गया है। मुख्य मन्दिर के शिखर पर ५२ टन चुम्बक लगा हुआ है। इस चुम्बक के कारण ही मन्दिर का पूरा ढाँचा समुद्र की हलचल को सहन कर पाता है।
६) कहते है कि सूर्य देव की पहली किरण सीधे इस मन्दिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है। फिर प्रवेश द्वार को पार करके यह किरण सीधे मूर्ति के मस्तक के केन्द्र पर पड़ती है, जो हीरे से प्रतिबिंबित होकर चमकदार दिखाई देती हैं।
७) कोणार्क सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर दो विशाल शेर स्थित है। इन शेरों द्वारा हाथी को कुचलता हुआ प्रदर्शित किया गया है प्रत्येक हाथी के नीचे मानव शरीर है। जो मनुष्यों के लिए संदेश देता हुए मनमोहक चित्र है।
८) कोणार्क के सूर्य मंदिर परिसर में नाटा मंदिर यानि नृत्य हाल भी देखने लायक है।
दर्शनीये स्थल :
कोणार्क सूर्य मंदिर के अलावा यहाँ कई ऐसे दर्शनीये स्थल है, जिन्हें आप घूम सकते है। ये दर्शनीये स्थल भी अपने आप में प्रमुख और प्रसिध्द है। आप यहाँ चंद्रभागा समुद्र तट, रामचंडी मंदिर, बेलेश्वर, पिपली, ककटपुर, चौरासी, बालीघई सहित कई दर्शनीये स्थल घूम सकते है। ये सभी दर्शनीये स्थल कोणार्क सूर्य मंदिर से चार से पांच किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है।
स्थानीय भोजन :
कोणार्क सूर्य मंदिर, एक धार्मिक स्थल है। इसलिये यहाँ आपको शुध्द शाकाहारी व ताजा पका हुआ भोजन मिलेगा। यहाँ के स्थानीय भोजन में आप दही-बड़ा, आलू-दम, छेना पोड़ा, चुंगडी मलाई, संतुला, एंडुरी पीठा, बड़ी चूरी, बेसरा इत्यादि व्यंजन का लुफ्त ले सकते है।
रुकने के स्थान :
कोणार्क में ठहरने के लिए सीमित विकल्प है। फिर भी यहाँ रुकने के लिए आपको ट्रैवलर्स लॉज, कोणार्क लॉज, सनराइज, सन टेम्पल होटल, लोटस रिजॉर्ट और रॉयल लॉज में किफायती दाम में कमरे मिल जाएगें। इनमे आपको ए सी और नॉन ए सी दोनों तरह के कमरे मिल जाएगें। इसके अलावा ओटीडीसी द्वारा संचालित पंथनिवास, यात्रि निवास में सरकारी आवास भी उपलब्ध है, जहां आप रुक सकते है।
जाने का समय :
वैसे तो आप कोणार्क सूर्य मन्दिर के दर्शन करने के लिए साल में कभी भी जा सकते है। भगवान के दर्शन करने के लिए हर दिन अच्छा है। लेकिन बारिश के मौसम से बचना चाहिए, क्योंकि बारिश के मौसम में आंधी तुफान और बारिश की वजह से आपको परेशानी हो सकती है। गर्मियों में तेज धूप होती है। इसलिये दर्शन करने का सबसे सही समय अक्तूबर से मार्च है। इस समय मौसम सुहाना रहता है और आपकी यात्रा सुखद और आरामदायक रहती है।
जाने के साधन :
कोणार्क सूर्य मन्दिर के दर्शन करने के लिए आजकल हर एक साधन उपलब्ध है। आप हवाई मार्ग द्वारा या फिर रेल मार्ग द्वारा या फिर सड़क मार्ग द्वारा मन्दिर के दर्शन कर सकते है। इनमे से आप अपने अनुसार किसी भी साधन की सेवा ले सकते है।
हवाई मार्ग द्वारा :
कोणार्क सूर्य मंदिर के सबसे नजदीक एयरपोर्ट बिजू पटनायक एयरपोर्ट, भुवनेश्वर है। एयरपोर्ट से मन्दिर की दूरी लगभग ६५ किलोमीटर के आस पास है। यह एयरपोर्ट देश के सभी प्रमुख एयरपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से आप बस या टैक्सी के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
रेल मार्ग द्वारा :
कोणार्क सूर्य मंदिर के सबसे निकट रेलवे स्टेशन भुवनेश्वर और पुरी है। भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से ६५ किलोमीटर और पुरी रेलवे स्टेशन से ३५ किलोमीटर की दूरी पर मन्दिर स्थित है। ये दोनों ही रेलवे स्टेशन देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से अच्छी तरह से जुड़े हुए है। रेलवे स्टेशन से आप बस या टैक्सी के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
सड़क मार्ग द्वारा :
भुवनेश्वर और पुरी से नियमित रूप से कोणार्क सूर्य मन्दिर के लिए बसें चलती रहती है। यहाँ आपके लिए परिवहन विभाग और प्राइवेट बसें हर समय उपलब्ध रहती है। आपको ए सी और नॉन ए सी दोनों तरह के विकल्प मिल जाएगें। मन्दिर के लिए लक्जरी और पर्यटन बसें भी चलती रहती है। कोणार्क सूर्य मन्दिर सड़क मार्ग द्वारा राज्यों और राज्यों के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
आपको अपने लेख के द्वारा श्री कोणार्क सूर्य मन्दिर एक नये धार्मिक स्थल को शेयर कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि आपको ये लेख पसंद आएगा। मेरा ये लेख आपकी यात्रा को आसान और सुगम बनाने में आपकी बहुत मदद करेगा। आप अपने सपरिवार के साथ श्री कोणार्क सूर्य मन्दिर के दर्शन करके आशिर्वाद प्राप्त कर सकते है। अगर आप कोई और जानकारी चाहते है, तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से पूछ सकते है।