श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड

  श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भारत देश के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग १२ ज्योतिर्लिंगों में से पाँचवां ज्योतिर्लिंग है। यह ज्योतिर्लिंग हिंदूओ का प्रसिध्द व प्रमुख और आस्था का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र है। यह मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में शामिल होने के साथ चारधाम और पंच केदार में भी एक है। यह मंदिर 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जो देश के12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा और भगवान शिव को समर्पित है। श्री केदारनाथ मंदिर अपने सामने बहने वाली मंदाकिनी नदी के साथ बर्फ से ढके और ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित होने की वजह से लाखों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्‍थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया। केदार भगवान शिव का एक और नाम है जिसका मतलब होता है रक्षक और विध्वंसक। इस मंदिर की यात्रा करने से भक्तों के लिये मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

श्री केदारनाथ मंदिर का इतिहास व पौराणिक कथा :

कहते है कि पांडवों ने युद्घ में कौरवों को मारने के बाद अपने आप को दोषी माना और वो चाहते थे कि भगवान शिव उन्हें पापों मुक्ति दें, पर भगवान शिव पांडवों से नाराज थे। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए काशी गये, काशी से फिर हिमालय के लिए आगे बढ़े, लेकिन भगवान शिव पांडवों को आसानी से मुक्त नही करना चाहते थे। इसलिये उन्होनें भगवान शिव ने अपने आप को एक भैंस के रूप में बदलकर गुप्त काशी चले गए, पर पांडव गुप्त काशी भी पहुँच गये और वहाँ पांडवों ने एक अनोखी भैंस देखी। फिर पांडवों में से भीम ने उस भैंस की पूँछ पकड़ ली, पूँछ पकड़ते ही भैंस वह अलग-अलग दिशाओं में बिखर गयी। कहते है कि इसका कूब केदारनाथ में गिरा और इसके बाद केदारनाथ मन्दिर प्रकट हुआ और इसके साथ ही भैंस के शरीर के दूसरे हिस्से तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर और मध्यमहेश्वर जैसे स्थानों पर गिरे थे। जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं। इसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को सभी पापों से मुक्त कर दिया और ज्योतिर्लिंग के रूप में केदारनाथ में हमेशा के लिए निवास करने लगे।

वैसे और भी पौराणिक कथायें प्रचलित है। कहते है कि हिमालय के केदार शृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके द्वारा प्रा त्रथ ना करने पर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर स्थित है।

केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला :

इस मन्दिर की वास्तुकला भव्यता और सुंदरता का एक अद्भुत और आकर्षक का केन्द्र है। यह मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है और यह मन्दिर कत्यूरी शैली में बना हुआ है। इस मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। इस मन्दिर के बाहर परिसर में नन्दी वाहन के रूप में विराजमान हैं। केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के चारों ओर विशालकाय चार स्तंभ विराजमान है जिनको चारों वेदों का धोतक माना जाता है , जिन पर विशालकाय कमलनुमा मन्दिर की छत टिकी हुई है । ज्योतिर्लिंग के पश्चिमी ओर एक अखंड दीपक है जो कई हजारों सालों से निरंतर जलता रहता है। जिसकी देख रेख और निरन्तर जलते रहने की जिम्मेदारी पूर्व काल से तीर्थ पुरोहितों की है । इस मन्दिर की गर्भ गृह की दीवारों पर सुन्दर आकर्षक फूलों और कलाकृतियों को उकेर कर सजाया गया है । गर्भ गृह में स्थित चारों विशालकाय खंभों के पीछे से स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान श्री केदारेश्वर जी की परिक्रमा की जाती है। श्री केदारनाथ, द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। इसलिये प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय भक्त मंदिर में प्रवेश करके पूजा अर्चना कर सकते हैं, लेकिन शाम के समय भगवान श्री केदारनाथ का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्त दूर से केवल इनका दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर के पीछे कई कुंड बने हुए हैं, जिनमें आचमन और तर्पण किया जा सकता है।

केदारनाथ मंदिर के खुलने और बंद होने की तारीखें :

सर्दियों में केदारघाटी पूरी तरह से बर्फ़ से ढँक जाती है। इसलिये यह मन्दिर कुछ महीनों के लिए बंद कर दिया जाता है। फिर इसके खोलने और बंद करने का मुहूर्त निकाला जाता है। सामान्यत: यह मन्दिर नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व) बन्द हो जाता है और छ: माह बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद इसके कपाट खुलते है।

केदारनाथ मंदिर को जाने वाला रास्ता :

अगर आप केदारनाथ मन्दिर के दर्शन करने का प्लान कर रहे है तो आप यह भी जान लीजिये कि गौरीकुंड से १६ किलोमीटर का रास्ता ट्रेक के द्वारा तय करना पड़ता है। इन रास्तों पर चलने के लिए घोड़े या टट्टू उपलब्ध कराये जाते है। लेकिन 2013 की बाढ़ ने केदारनाथ को तबाह कर दिया था, फिर भी इसकी चमक को फिर से प्राप्त करने के लिए काम किया जा रहा है। केदारनाथ की ट्रैकिंग का रास्ता अब थोड़ा अलग है। नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग ने थोड़े- थोड़े किलोमीटर पर शेड बनाए हैं, जहां भक्त इस कठिन ट्रेक के दौरान आराम कर सकते हैं।

केदारनाथ मंदिर में दर्शन करने का समय :

यह मन्दिर सुबह ६ बजे दर्शन के लिए खोला जाता है, लेकिन दर्शन करने के लिए भक्तों की लाइन रात से ही लगने लगती है। इसके बाद दोपहर तीन से पाँच बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।पुन: शाम 5 बजे भक्तों को दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है। फिर पाँच मुख वाली भगवान शिवजी की मूर्ति का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है। रात को 8:30 बजे श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।

पूजा का क्रम :

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख हैं। मन्दिर-समिति द्वारा केदारनाथ मन्दिर में पूजा कराने हेतु जनता से जो शुल्क लिया जाता है, उसमें समिति समय-समय पर परिर्वतन भी करती रहती है।

दर्शनीये स्थल :

वासुकी ताल :

यह एक खूबसूरत और सुंदर झील है और यह श्री केदारनाथ मन्दिर से महज ८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ जो लोग घूमने के लिए आते है, वो झील के पास स्थित चौखंभा चोटी का भरपूर लुफ्त लेते है।

आदि शंकराचार्य समाधि :

यह वही आदि गुरू शंकराचार्य जी है, जिन्होने ८ वीं शताब्दी में श्री केदारानाथ मंदिर का पुन:निर्माण कराया और चारों मठों की स्थापना की। इनकी समाधि श्री केदारनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है। इसलिये जो लोग मन्दिर के दर्शन करने के लिए आते है, वो आदि गुरू शंकराचार्य जी की समाधि के दर्शन भी जरूर करते है।

अगस्त्य मुनि :

यह स्थान अगस्त्य ऋषि का घर मानी जाती है, यह 1000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है।

चंद्रशिला :

यह जगह ट्रेकिंग के लिये सबसे सही है, यह स्थान 3679 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसलिये दिसंबर से जनवरी में बर्फ पड़ने के कारण यहां ट्रेकिंग रोक दी जाती है। यह जगह पहली बार ट्रेकिंग करने वालों के लिए सबसे सही है।

सोनप्रयाग :

यह स्थान काफी प्रसिध्द है और यह 1829 किमी की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान श्री केदारनाथ मन्दिर से लगभग १९ किलोमीटर के आस पास है। यह वही स्थान है,जहां बासुकी और मंदाकिनी नदी आपस में मिलती हैं।

केदारगिरी पिंड :

यह वही स्थान है, जहाँ से मंदाकिनी जैसी कई हिमनदियां बहती हैं। केदार गिरीपिंड केदारनाथ, केदारनाथ गुंबद और भारतेकुन्था नम के पहाड़ों से मिलकर बना है।

गौरीकुंड :

यह स्थान 1972 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, गौरीकुंड एक छोटा सा गाँव है। जहाँ भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने कठिन तपस्या की थी। इस स्थान पर गौरीकुंड नाम का पानी का स्रोत है, जिसे पीकर कई बीमारियां दूर हो जाती है।

केदारनाथ मंदिर में मनाये जाने वाले उत्सव :

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में कई तरह के उत्सव मनाए जाते है, इन उत्सवों में देश के कोने कोने से लोग शामिल होने के लिए जाते है। उस यहाँ का माहौल देखने लायक होता है। जैसे,

बद्री-केदार उत्सव :

यह उत्सव भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित है और यह उत्सव जून के महीने में मनाया जाता है। यह उत्सव आठ दिन तक चलता है और इस उत्सव में उत्तराखण्ड के कलाकारों को अपनी संगीत प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है।

श्रावणी अन्नकूट मेला :

यह उत्सव रक्षा बंधन के एक दिन पहले से शुरू होता है और इस उत्सव में पूरे ज्योतिर्लिंग को पके हुए चावल से ढक दिया जाता है। फिर इस प्रसाद के रूप में बाँट दिया जाता है।

समाधि पूजा :

यह पूजा हर साल श्री आदि शंकराचार्य की समाधि पर होती है। जब श्री केदारनाथ धाम मन्दिर बंद हो जाता है, तब यह पूजा होती है।

प्रसादी भोजन :

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में प्रसाद के रूप मेंअन्न,मिठाई और फल दिया जाता है। आप मन्दिर में प्रसाद का आनंद ले सकते है। यहाँ मंदिर के आस-पास अन्न भोजन की सुविधा होती है, यहां अन्न, दाल, चावल, सब्जियां, रोटी और पानी की सुविधा होती है। यहाँ दर्शन करने वाले भक्तों के लिये अच्छी तरह से व्यवस्था की जाती है। यहाँ पर अन्न भोजन बिल्कुल निशुल्क होता है।

दर्शन करने का समय:

श्री केदारनाथ धाम के दर्शन करने के लिये आपको यह जान लेना चाहिये कि यहाँ का मौसम कैसा रहता है। यहाँ का मौसम अधिकतर ठंडा रहता है। इसलिये सर्दियों में यात्रा करने से बचे, क्योंकि यहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती है। यहाँ का तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। बारिश के मौसम में भारी बारिश होती है, जिसकी वजह से आंधी, तूफान और भूस्खलन की वजह से यात्रा में बाधा उत्पन्न होती है। सबसे सही मौसम मई से जून और सितंबर से अक्टूबर है। इनमे आपकी यात्रा आरामदायक और सुविधाजनक रहेगी।

रुकने के स्थान :

अगर आप यहाँ रुकना चाहते है, तो आपको धर्मशाला, होटल या फिर कैंप की सुविधा मिल जाएगी, ये आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप कहाँ रुकना चाहेगें। आप बिरला धर्मशाला, आगामी धर्मशाला, भैरव गेस्ट हाउस धर्मशाला इत्यादि है। आप हिमालयन कॉम्फर्ट, श्री केदार गेस्ट हाउस, गौरीकुंड होटल में रुक सकते है। आप जगन्नाथ टूरिस्ट कैंप, बाबा केदार कैंप, गौरीकुंड कैंप में रुक सकते है।

जाने का समय :

अगर आप श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का प्लान कर रहे है, तो आप किसी भी साधन की सेवा ले सकते है। आप हवाई मार्ग या फिर रेल मार्ग या फिर सड़क मार्ग द्वारा दर्शन कर सकते है। आजकल हर दर्शन करने वालों के लिए हर एक सुविधा उपलब्ध है।

हवाई मार्ग द्वारा :

गौरीकुंड के सबसे निकट एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, इस एयरपोर्ट से आप टैक्सी के द्वारा गौरीकुंड तक पहुँच सकते है।गौरीकुंड से श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की दूरी १६ किलोमीटर के आस पास है। जो आपको ट्रेक करके तय करनी पड़ेगी। ट्रेकिंग के लिये आप घोड़े / पालकी की सवारी की भी सेवा ले सकते है। अगर आप ट्रेकिंग नहीं करना चाहते,तो देहरादून में उपलब्ध हेलीकॉप्टर की सेवा ले सकते है।

रेल मार्ग द्वारा :

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। जो श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग से २१६ किलोमीटर के आस पास है। यह रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा है। रेलवे स्टेशन से आप बस या टैक्सी के द्वारा गौरीकुंड तक पहुँच सकते है। गौरीकुंड से ट्रेकिंग के द्वारा श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग तक पहुँच सकते है।

सड़क मार्ग द्वारा :

गौरीकुंड, आस पास के लगभग सभी प्रमुख शहरों जैसे ऋषिकेश, चमोली, उत्तरकाशी, देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी, श्रीनगर, टिहरी आदि से सड़क के द्वारा से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप दिल्ली के आईएसबीटी कश्मीरी गेट से श्रीनगर और ऋषिकेश तक बस ले सकते हैं। उत्तराखंड के प्रमुख स्थलों से टैक्सी और बसों की सेवा ली जा सकती हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 109, रुद्रप्रयाग और केदारनाथ को जोड़ता है,

आपको अपने लेख के द्वारा एक नये धार्मिक स्थल को शेयर कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि आपको ये लेख पसंद आएगा। मेरा ये लेख आपकी यात्रा को आसान और सुगम बनाने में आपकी बहुत मदद करेगा। आप अपने सपरिवार के साथ यहाँ आकर श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके आशिर्वाद प्राप्त कर सकते है। अगर आपको हमारा लेख अच्छा लगे, तो आप रेस्पॉन्स दीजिये।

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