भारत देश के उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में चार धामों में से एक श्री जगन्नाथ धाम स्थित है। यह धाम भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है और इस धाम में भगवान श्री कृष्ण के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा विराजमान है। श्री जगन्नाथ धाम, शंख के आकार का होने के कारण इसे शंख क्षेत्र और पुरुषोत्तमपुरी भी कहते है। श्री जगन्नाथ पुरी में विश्व की सबसे बड़ी रसोई है। जिसमे प्रतिदिन 25000 और रथ यात्रा उत्सव के दिनों में एक लाख लोगों के लिए भोजन बनता है। श्री जगन्नाथ पुरी भारतीय संस्कृति, पारंपरिक कला, इतिहास, वास्तुकला, समुद्री शिल्प के अलावा मंदिरों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। पुरी में प्रति वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भव्या रथयात्रा निकली जाती है। जिसमे भगवान श्री जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को लकड़ी के बने रथ में बिठाकर नगर का भ्रमण करवाया जाता हैं।
श्री जगन्नाथ मंदिर के आश्चर्य और रहस्य :
१) इस मन्दिर के शिखर पर लगे सुदर्शन चक्र को पुरी के किसी भी जगह से देखेंगे, तो वो आपको हमेशा अपने सामने ही लगा दिखेगा।
२) श्री जगन्नाथ धाम मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखने पर आपको समुद्र की लहरों से आने वाली आवाज सुनाई नहीं देगी। आश्चर्य की बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखते है, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देने लगती है। यह अनुभव शाम के समय और भी अद्भुद प्रतीत होता है।
३) श्री जगन्नाथ मंदिर के शिख़र पर लगा झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है।
४) आपने हर मंदिर के शिख़र पर पक्षीयों को बैठे और उड़ते देखा होगा, परन्तु श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुज़रता, यहां तक कि हवाई जहाज़ भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता। ये बात दुनिया के लिए आज भी रहस्य बनी हुई है।
५) पुरी मंदिर का डिज़ाइन भी काफ़ी रहस्मयी है, क्योंकि दिन के किसी भी समय श्री जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिख़र की परछाई नहीं बनती है।
६) इस मंदिर में प्रसाद बनाने के लिए मिटटी के सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। इस प्रसाद को लकड़ी जलाकर पकाया जाता है, इस प्रक्रिया में मुख्य बात यह है कि सबसे ऊपर के बर्तन का प्रसाद पहले पकता है और नीचे के बर्तन का प्रसाद अंत में पकता है।
७) इस मंदिर में प्रतिदिन लगभग हर रोज़ कुछ 2 हज़ार लोगों से लेकर 20 हज़ार लोग दर्शन के लिए आते हैं और भोजन भी करते हैं, फिर भी अन्न की कमी नहीं पड़ती है और मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। हर समय पूरे वर्ष के लिए भंडार भरपूर रहता है।
८) आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुद्र की तरफ चलती है पर आश्चर्य की बात यह है कि पुरी में यह प्रक्रिया उल्टी है।
९) मंदिर के पुजारी द्वारा 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडा प्रतिदिन बदला जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया, तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।
श्री जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला :
श्री जगन्नाथ धाम मन्दिर 214 फुट ऊँचा , 20 फुट ऊँची दीवारों से घिरा और चार लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैला है। यह मंदिर कलिंग शैली में बना हुआ है। इस मंदिर के शिखर पर बना सुदर्शन चक्र (नील चक्र) अष्ट धातुओं से बनाया गया है। श्री जगन्नाथ पुरी मन्दिर के चारों दिशाओं में चार द्वार बने हुए है।
१) पूर्व दिशा में सिंह द्वार है। जहां से आम लोग को प्रवेश दिया जाता है।
२) पश्चिम दिशा में हाथी द्वार है। इस द्वार से पुजारी पंडित प्रवेश करते हैं।
३) उत्तर दिशा में व्याघ्र द्वार है। इस द्वार से विकलांग , बीमार व्यक्ति प्रवेश करते हैं।
४) दक्षिण दिशा में अश्व द्वार है। इस द्वार से VIP लोग प्रवेश करते हैं।
श्री जगन्नाथ पुरी की पौराणिक कथा और अधूरी मूर्तियों का रहस्य :
पुराणों के अनुसार कई वर्ष पहले नीलांचल पर्वत पर स्वयं भगवान नीलमाधव (जगन्नाथ) निवास करते थे। एक दिन राजा इंद्रद्युम्न को रात में भगवान विष्णु ने सपने में दर्शन दिये और कहा कि नीलांचल पर्वत की एक गुफा के अन्दर मेरी एक मूर्ति है, तुम एक मन्दिर बनवाकर उस मूर्ति को इस मन्दिर में स्थापित कर दो। नीलांचल पर्वत पर सबर कबीला था, जिसका सरदार विश्वकवसु भगवान नीलमाधव का परम भक्त था और उसने मूर्ति को गुफा में झिपा कर रखा था। वह गुफा में उस मूर्ति की पूजा अर्चना करता था। राजा इंद्रद्युम्न ने अपने सेवक ब्राह्मण विद्यापति को मूर्ति लाने का जिम्मा दिया।
विद्यापति ने सरदार विश्वूवसु की पुत्री से विवाह कर लिया। विवाह करने के कुछ दिनों के बाद विद्यापति ने अपने ससुर विश्ववसु से भगवान नील माधव के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की, पहले तो विश्ववसु ने मना कर दिया, परन्तु बाद में बेटी की जिद के कारण मान गया। तब विश्ववसु, विद्यापति की आँख पर पट्टी बाँध कर भगवान नील माधव के दर्शन करवानें ले गया। विद्यापति रास्ते में सरसों के दाने गिराते गया और बाद में सरसों के दानो के जरिये गुफा से मूर्ति चुराकर राजा को दे दी। सरदार विश्वेवसु भगवान नील माधव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त को दु:खी देखकर भगवान भी दुखी हो गए और उसी गुफा में वापस लौट गए। जाते समय उन्होंने राजा इंद्रद्युम्न से वादा किया कि वो उनका एक विशाल मंदिर बनवा देगा, तो वे उसके पास जरूर लौट आयेंगे।
राजा इंद्रद्युम्न ने एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया और उसमे विराजमान होने के लिए भगवान विष्णु से आग्रह किया। तब भगवान विष्णु ने कहा कि द्वारका से एक लट्ठे के जैसा बड़ा टुकड़ा समुद्र में तैरकर पुरी तक आ गया है, उससे तुम मेरी मूर्ति बनवाओ। राजा ने अपने सेवकों को लट्ठे का टुकड़ा लाने को भेजा। सेवकों को टुकड़ा तो मिल गया पर वे उसे उठा नही सके। फिर राजा ने नीलमाधव के परम भक्त सरदार विश्वेवसु को उस भारी टुकड़े को लाने के लिए प्रार्थना की। जब विश्ववसु उस लकड़ी के लट्ठे को लेकर आया, तब सबको बहुत ज्यादा आश्चर्य हुआ। राजा ने लकड़ी के लट्ठे की मूर्ति बनवाने के लिए कई कुशल कारीगरों को लगाया, पर उन कारीगरों में से कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका। तब श्रष्टी के कारीगार भगवान विश्वककर्मा एक बुजुर्ग व्यक्ति का रूप रखकर आये और उन्होनें राजा से मूर्ति बनाने की इच्छा व्यक्त की और कहा कि वे २१ दिन तक अकेले में मूर्ति बनायेगें और मूर्ति बनाते हुए कोई देखे ना। राजा ने कारीगर की बात मान ली। अब लोगों को कमरे के अंदर से आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें सुनाई दे रही थी। इसी बीच रानी गुंडिचा,जो राजा इंद्रदयुम्न की रानी थी, वे दरवाजे के पास गई पर उन्हें कोई आवाज सुनाई नहीं दी। उन्हें लगा कि कारीगर मर गया। तब यह सूचना उन्होनें राजा को भिजवाई कि अंदर से कोई आवाज नही आ रही है। यह सुनकर राजा चिंतित हो गया और सभी बातों को दरकिनार करते हुए उसने कमरा खोलने का आदेश दिया। जब कमरा खोला गया, तब वो कारीगर कहीं दिखाई नही दिया और कमरे में तीन अधूरी मूर्तियाँ दिखाई दी। सबने देखा कि भगवान नीलमाधव (जगन्नाथ) और उनके भाई के छोटे-छोटे हाथ बने थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं बनी थी और सुभद्रा जी के तो हाथ-पांव ही नहीं बने थे। तब भगवान श्री जगन्नाथ ने राजा को सपने में दर्शन दिये और कहा कि वे अब इन अपूर्ण मूर्तियों में ही दर्शन दिया करेगें। राजा ने इसे भगवान जगन्नाथ की इच्छा मानकर इन अपूर्ण मूर्तियों को मन्दिर में स्थापित कर दिया। इस प्रकार उस समय से आज तक भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बहन इसी रूप में भक्तों को दर्शन दे रहे हैं।
जब पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के नश्वर शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया, तब पूरा शरीर तो जल गया पर दिल जलता ही रहा। फिर इस जलते हुए दिल रूपी पिंड को समुद्र में प्रवाहित कर दिया, लेकिन समय बीतने के साथ उस दिल रूपी पिंड ने एक लट्ठे का रूप ले लिया। उस समय जगन्नाथ पुरी के राजा इंद्रद्युम्न को भगवान नीलमाधव ने इस दिल रूपी लट्ठे की मूर्ति बनाने का आदेश दिया। प्राचीन काल का यही पिंड भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर स्थापित है। इस पिंड को आज तक किसी ने नही देखा, 12 या 19 वर्षों में जब नवकलेवर का अवसर आता है, तब मूर्तियों को बदलते समय पुजरियों की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है, इसलिए वे आज तक ना तो उस लट्ठे को देख पाए हैं और ही छूकर महसूस कर पाए हैं। बस इतना अहसास होता है कि लट्ठा बहुत नर्म होता है।
श्री जगन्नाथ मंदिर के दर्शन :
श्री जगन्नाथ मंदिर सुबह ५ बजे खुलता है और रात १२ बजे तक खुला रहता है। श्री जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करने से पहले आप शिखर पर लगे सुदर्शन चक्र के दर्शन कीजिये, इस सुदर्शन चक्र की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे आप पूरी के किसी भी कोने से देखेगें, तो ये आपको अपने सामने ही लगा दिखाई देगा। इसके बाद आप मन्दिर में पहुँचकर जूते, चप्पल, मोबाइल और चमड़े के सामान जमा करके टोकन ले लीजिये। टोकन लेने के बाद आप सिंह द्वार से मन्दिर के अंदर प्रवेश करेगें। प्रवेश करते समय यहाँ एक खासियत यह है कि जैसे ही सिंह द्वार से एक कदम अंदर रखेगें, वैसे ही समुद्र की लहरों की आवाज आनी बंद हो जाएगी और जैसे ही एक कदम बाहर निकलेगें, आवाज आनी शुरू हो जाएगी। फिर २२ सीढियाँ चढ़ने के बाद सबसे पहले आप विश्वनाथ मन्दिर के दर्शन करेगें, दर्शन करने के बाद भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए लाइन में लग जाये। धीरेधीरे आगे बढ़ते हुए आप मुख्य मन्दिर के गर्भग्रह तक पहुँच जाएगें। गर्भग्रह में आपको भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के दर्शन होंगे। यहाँ भगवान जगन्नाथ की मूर्ति दायीं तरफ, मध्य में उनकी बहन सुभद्रा, बाई तरफ बड़े भाई बलभद्र की मूर्ति स्थित है। इन तीनों ही मूर्तियों के चरण नही है। फिर आप भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते हुए धीरेधीरे बाहर आ जाये। श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में विमला देवी मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, गोपीनाथ मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, बट गणेश मंदिर व अन्य मंदिर है, आप इन सभी मंदिरों के भी दर्शन कर लीजिये। अब इस मन्दिर की और खासियतों के बारे में बताते है, कि इस जगन्नाथ मंदिर के शिख़र पर लगा झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिख़र की परछाई नहीं बनती है। श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुज़रता, यहां तक कि हवाई जहाज़ भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता।
भगवान श्री जगन्नाथ की रसोई :
भगवान जगन्नाथ की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है और इस रसोई को देखने के लिए १० रुपये का टिकट लगता है। इस रसोई में भगवान जगन्नाथ को लगने वाले ५६ भोग को लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 कारीगर बनाते है। कहते है कि भगवान जगन्नाथ को लगने वाले भोग का माता लक्ष्मी स्वयं देखरेख करती है और यह भोग बिना प्याज और लहसुन से तैयार किया जाता है। भोग निर्माण को मिट्टी के बर्तनों में तैयार करते है और रसोई के पास स्थित गंगा व यमुना नाम के कुओं के जल से ही इन 56 भोग को बनाते है। ५६ भोग को मिट्टी के सात बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर लकड़ी जलाकर बनाते है। अब यहाँ इस प्रक्रिया में एक खास बात यह है कि सबसे ऊपर के बर्तन का प्रसाद पहले पकता है और नीचे के बर्तन का प्रसाद अंत में पकता है। अब यह भोग भगवान जगन्नाथ को चढ़ने के बाद महाभोग बन जाता है। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास आनंद बाजार है, इसमें महाभोग का प्रसाद नाममात्र शुल्क में मिलता है। अब यहाँ भी एक खास बात है कि हजारों या लाखों दर्शन करने वाले भक्त आ जायें, यहाँ प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता।
भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर की आरती और अनुष्ठान की समय सारणी :
१) मंगल आरती : सुबह ५ बजे होती है
२) बेशालगी या भितर कथा : भगवान के कई बार कपड़े बदले जाते है। उन्हें सुबह ८ बजे उत्सव के अवसरों के अनुसार सुनहरी और सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित किया जाता हैं।
३) सकला धूप : सुबह १० बजे उपासरों के साथ सुबह की पूजा की जाती है और 56 भोग तैयार करके भगवान को भोग लगाया जाता है।
४) मेलम और भोग मंडप : सुबह की पूजा के बाद भगवान जगन्नाथ के कपड़े फिर से बदले जाते है, जिसे मेलम कहते है।इसके बाद भोग मंडप में पूजा होती है और इस भोग को, जो महाप्रसाद बन जाता है, उसे भक्तों में बाँट दिया जाता है।
५) मध्याह्न धूप : सकला धूप की तरह, यह पूजा भी सुबह ११ बजे से दोपहर १२ बजे के बीच होती है।
६) संध्या धूप – शाम ७ बजे से रात ८ बजे के बीच फिर से पूजा की जाती है और भोग लगाया जाता है।
७) मेलम और चंदना लग : शाम की पूजा के बाद भगवान जगन्नाथ का चंदन के लेप से अभिषेक किया जाता है। 10 रूपये के नाममात्र शुल्क का भुगतान करने के बाद इस अनुष्ठान को देखा जा सकता है।
८) बद्रीश्रंग भोग : यह दिन का अंतिम भोग है। इसके साथ ही भगवान जगन्नाथ की पूजा जाती है।
पुरी बीच :
बंगाल के समुद्र तट का सुंदर, मनमोहक और दूर दूर तक फैली खूबसूरती मन को मोह लेती है। समुद्र तट पर फैली सुनहरी रेत, मदमस्त चलने वाली हवा और लहराता हुआ पानी पुरी आने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। इस बीच को नहाने और तैरने के लिए भारत के सर्वश्रेष्ठ समुद्री तटों में से एक माना गया है। समुद्र के किनारे विभिन्न कलाकारो द्वारा बनाई गई रेत की मूर्तियां अद्भुत नजारा पेश करती है। इस पुरी के अनूठे बीच पर सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का अद्भुत नजारा देखकर आप मंत्रमुग्ध हो जायेंगे। सूर्योदय के समय झिलमिलाती सूर्य की किरणें समुद्र में इंद्रधनुषी छटा बिखेर रही होती है और सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य आपकी सारी थकान को दूर कर देता है।
दर्शनीय स्थल :
अगर आप भगवान जगन्नाथ मन्दिर के दर्शन करने जा रहे है, तो आप इस मन्दिर के आस पास स्थित कई और दर्शनीय स्थल घूम सकते है। ये दर्शनीय स्थल भी अपने आप में प्रमुख, प्रसिध्द और महत्वपूर्ण है। जैसे,
नरेंद्र सरोवर, पुरी :
यह सरोवर श्री जगन्नाथ मन्दिर से लगभग १ किलोमीटर के आस पास है और इस सरोवर के बीचोबीच एक मन्दिर बना है। इस सरोवर में श्री जगन्नाथ यात्रा के समय हर साल चंदन यात्रा के दिन भगवान के प्रतिनिधि मदन मोहन, भू देवी एवं श्रीदेवी तथा पालकी में श्री रामकृष्ण विराजमान होकर नरेन्द्र सरोवर आते है और नौका विहार करते है।
गुंडिचा मंदिर, पुरी :
यह मन्दिर श्री जगन्नाथ मंदिर से २.५ किलोमीटर दूर ग्रांड रोड के दूसरे सिरे पर स्थित है। यह मन्दिर कलिंग शैली में बना है और भगवान जगन्नाथ की मौसी गुंडिचा को समर्पित है। यह मन्दिर एक सुंदर बगीचे के बीचोबीच बना है और हर साल होने वाली श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के समय भगवान जगन्नाथ यहाँ 9 दिन रुकते है। भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा को उनकी मौसी पादोपीठा खिलाकर उनका स्वागत करती हैं।
बेड़ी हनुमान मंदिर, पुरी :
यह मन्दिर समुद्र तट के निकट स्थित एक छोटा सा मन्दिर है और इसे महावीर मंदिर भी कहते है। भगवान जगन्नाथ ने श्री हनुमान जी को श्री जगन्नाथ मन्दिर की रक्षा करने के लिए नियुक्त किया था। लेकिन श्री हनुमान जी, भगवान जगन्नाथ व बलराम जी और सुभद्रा जी के दर्शन के लिए बार बार नगर में चले जाते थे। उनके जाने के बाद समुद्र भी पीछेपीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। इस प्रकार समुद्र ने 3 बार मंदिर को तोड़ दिया, तब भगवान जगन्नाथ ने श्री हनुमान को जंजीरों से बांध दिया। इस मंदिर में हनुमान जी की जंजीरों से बंधी मूर्ति स्थापित है।
जगन्नाथ जी की ससुराल, पुरी :
भगवान श्री जगन्नाथजी की ससुराल, बेड़ी हनुमान जी और सोनारगोरांगी मंदिर के निकट स्थित है और इस मन्दिर को देखने का ३ रुपये का टिकट लगता है। इस मन्दिर की दीवारों पर जगह जगह लिखा हुआ है कि इस मन्दिर का जीर्णोद्धार दान द्वारा हुआ है। कहते है कि भगवान जगन्नाथ नौ दिनों के लिए अपने भाई और बहन के साथ रथों पर विराजमान होकर लक्ष्मी जी को बिना बताए ससुराल आते है और माता लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ जी से रूष्ट होकर अपने मायके रसिक शिरोमणि मंदिर चली जाती है, फिर क्रोध में भगवान जगन्नाथ जी का रथ तोड़कर वापस अपने ससुराल भगवान जगन्नाथ जी मंदिर को लौट आती है। यहाँ यह घटना हर साल उत्सव के रूप में मनाई जाती है।
लोकनाथ मंदिर, पुरी :
यह मन्दिर पुरी का दूसरा सबसे प्रमुख और प्रसिध्द मन्दिर है, जो जगन्नाथ मंदिर से सिर्फ 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहते है कि इस मन्दिर के शिवलिंग को भगवान श्री राम जी के द्वारा स्थापित किया गया है और यह भगवान शिव को समर्पित है। इस मन्दिर में भगवान शिव, लोकनाथ के रूप में स्थित है। भगवान शिव ने शनिदेव की कुदृष्टि से बचने के लिए, यहाँ के तालाब के अंदर कुछ समय तक निवास किया था। इस मन्दिर में आकर कई लोग भगवान लोकनाथ की कृपादृष्टि से विभिन्न घातक रोगों से ठीक हुए हैं।
विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ रथ यात्रा :
पवित्र सप्तपुरियों में से एक पुरी में हर साल भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती हैं और इस भव्य और प्रसिध्द रथयात्रा में देश विदेश से भारी संख्या में भक्त शामिल होने के लिए पहुँचते है। भक्त इस रथयात्रा में शामिल होकर भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के रथ को खींचते हैं, इससे उन्हें सौ यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता हैं। भगवान श्री जगन्नाथ के रथ में 16 पहिये, बलराम के रथ में 14 व बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं। इस रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज रथ पर श्री बलरामजी, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अन्त में गरुण ध्वज रथ पर श्री जगन्नाथ जी का रथ चलता हैं। यह रथयात्रा १० दिन तक चलती है। श्री जगन्नाथ मन्दिर से रथयात्रा प्रारम्भ होकर भगवान जगन्नाथ को उनकी मौसी के घर गुंडिचा माता मंदिर पहुँचाया जाता है। यहाँ भगवान जगन्नाथ 7 दिन तक विश्राम करते हैं। इस दौरान यहाँ देशभर से लाखों भक्त पहुँचते हैं।
जाने का समय :
श्री जगन्नाथ पुरी, बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित होने के कारण मौसम को समुद्र बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। बारिश के मौसम में यहाँ भारी बारिश होती है और गर्मियों में बहुत तेज गर्मी पड़ती है। इसलिये दर्शन करने का सबसे सही समय अक्तूबर से मार्च है। इसके अलावा विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा का समय भी पुरी जाने के लिए उपयुक्त है
रुकने के स्थान :
अगर आप श्री जगन्नाथ पुरी के आस पास रुकना चाहते है, तो आपके लिए समुद्र के किनारे, बीच के आस पास कई होटल मिल जाएगें। मन्दिर ट्रस्ट के नीलाचल भक्त निवास और श्री गुंडिचा भक्त निवास में ७०० से १२०० तक ए सी और नॉन ए सी दोनों तरह के रूम मिल जाएगें। है। इन दोनों भक्त निवास में रूम ऑनलाइन बुक करने के लिए मंदिर प्रशासन की वेबसाइट www.jagannath.nic.in पर जा सकते है। यहाँ रुकने के लिए कई मठ एवं धर्मशालाएं भी उपलब्ध हैं, जहाँ भक्त के रुकने एवं भोजन आदि की समुचित व्यवस्था होती है। कुछ धर्मशाला इस प्रकार है, दुधवइ वालंकी धर्मशाला, बीकानेर वालंकी धर्मशाला , गोयनका धर्मशाला, सेठ धनजी मूलजी धर्मशाला, सेठ कन्हैया लाल बागला धर्मशाला, श्री आशाराम जी व मोतीराम जी की धर्मशाला इत्यादि।
जाने के साधन :
श्री जगन्नाथ धाम के दर्शन करने के लिए आप किसी भी साधन की सेवा ले सकते है। यह धाम, एयरपोर्ट से, रेलवे स्टेशन से और सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आपकी श्री जगन्नाथ पुरी की यात्रा आसान और आरामदायक रहेगी।
हवाई मार्ग द्वारा :
श्री जगन्नाथ पुरी के सबसे नजदीक एयरपोर्ट बीजू पटनायक एयरपोर्ट है। जोकि भुवनेश्वर में है। यह एयरपोर्ट, श्री जगन्नाथ पुरी से ६० किलोमीटर दूर स्थित है। यह एयरपोर्ट देश के सभी प्रमुख एयरपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से आप बस, टैक्सी या फिर कैब के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
रेल मार्ग द्वारा :
श्री जगन्नाथ पुरी के सबसे रेलवे स्टेशन पुरी रेलवे स्टेशन है, यह रेलवे स्टेशन देश के लगभग सभी प्रमुख रेलवे स्टेशन से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अगर पुरी रेलवे स्टेशन के लिए कोई सीधी ट्रेन नही है, तो आप भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन आकर आसानी से पूरी पहुँच सकते है। रेलवे स्टेशन से आप बस, टैक्सी या कैब के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
सड़क मार्ग द्वारा :
उड़ीसा राज्य नेशनल हाइवे नंबर 5, 6, 23, 42 और 43 से सड़क मार्ग द्वारा पूरे देश से जुड़ा हुआ है। श्री जगन्नाथ पुरी, देश का सबसे प्रमुख धार्मिक स्थल होने के कारण यहाँ के लिए परिवहन विभाग की बसें नियमित रूप से चलती रहती है। ओडिशा टूरिज्म भी कई सामान्य और लग्जरी बसें भी चलाता है। यहाँ आपको ए सी और नॉन ए सी दोनों ही विकल्प मिलेगें। पुरी की सड़क मार्ग से यात्रा करने पर रास्ते में आप प्राकृतिक सौन्दर्य का लुफ्त ले सकते है।
आपको अपने लेख के द्वारा श्री जगन्नाथ मन्दिर और श्री जगन्नाथ रथयात्रा को शेयर कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि आपको ये लेख पसंद आएगा। मेरा ये लेख आपकी यात्रा को आसान और सुगम बनाने में आपकी बहुत मदद करेगा। आप अपने सपरिवार के साथ भगवान श्री जगन्नाथ मन्दिर के दर्शन करके आशिर्वाद प्राप्त कर सकते है। अगर आप कोई और जानकारी चाहते है, तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से पूछ सकते है।