तमिलनाडु का मदुरई शहर, दूसरा सबसे बड़ा शहर है, जो वैगई नदी के किनारे स्थित है। मदुरई शहर व्यावसायिक, सांस्कृतिक और आवागमन का प्रमुख केंद्र है। मदुरई एक प्राचीन शहर है और यहाँ का श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर, भारत के प्रसिध्द मंदिरों में से एक है। महात्मा गाँधी ने इसी शहर से पैन्ट पहनना छोड़ कर धोती पहनने की शुरुवात की थी। मदुरई शहर के कमल के आकर में दिखने के कारण इसे लोटस सिटी भी कहा जाता है। यह मन्दिर भगवान शिव को सुन्दरेश्वरर या सुन्दर ईश्वर के रूप में और माता पार्वती देवी को मीनाक्षी या मछली के आकार की आंख वाली देवी, दोनों को समर्पित है। मछली, पांड्य राजाओं का राजचिह्न था। यह मन्दिर 2500 वर्ष पुराने मदुरई शहर की जीवनरेखा है। इस मन्दिर को माता पार्वती के सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। इस मन्दिर का स्थापत्य तथा वास्तुकला अचंभित कर देने वाली है। इसीलिए इसे दुनिया के ७ आश्चर्यों की सूची में शामिल किया गया है।
मदुरई का इतिहास :
तमिलनाडु का मदुरई शहर भव्य व खूबसूरत और मनमोहक शहर है और इस शहर का निर्माण कमल के फूल की तरह किया गया है। इस शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य वैभव के कारण, मदुरई को ‘पूर्व का एथेंस’ कहते है। १० वीं शताब्दी से पहले मदुरई शहर पर पंड्या राजाओं का शासन था। फिर १३ वीं शताब्दी तक चोल राजाओं ने शासन किया। सन् १३११ में दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने कीमती पत्थरों, रत्नों और अन्य दुर्लभ खजानों को लूट लिया। इसके बाद सन् १३२३ में पंड्या साम्राज्य का अंत हो गया और फिर मदुरई पर दिल्ली साम्राज्य का शासन हो गया। सन् १३७१ में विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय ने मदुरई शहर पर किया। सन् १६२३ से सन् १६५९ के बीच थिरुमलाई नायक मदुरई के शासक रहे। लेकिन थिरुमलाई नायक मदुरई के सबसे प्रसिध्द शासक थे। उन्होंने मदुरई शहर और उसके आसपास मीनाक्षी मंदिर का राजा गोपुरम, पुडु मंडपम और थिरुमलाई नायक का महल जैसे कई अद्भुद निर्माण किये। जिसके कारण उन्हें आज भी मदुरई के लोगों द्वारा याद किया जाता है।
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा :
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर में भगवान शिव को सुंदरेश्वर और माता पार्वती को मीनाक्षी कहते है, मदुरई में इन्हीं नामो से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार मदुरई के राजा पाण्ड्य मलयध्वज के कोई सन्तान नही थी। उन्होनें संतान प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की बहुत ही कठिन तपस्या की और एक दिन उन्होनें भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। तब भगवान के आशीर्वाद से राजा पाण्ड्य मलयध्वज को एक पुत्री प्राप्त हुई, जिसका नाम उन्होनें मीनाक्षी रखा। फिर भगवान शिव ने मीनाक्षी देवी से विवाह करने के लिए सुंदरेश्वर के रूप में जन्म लिया। वयस्क होने पर मीनाक्षी देवी ने राज्य का शासन संभाल लिया। तब भगवान शिव ने मीनाक्षी देवी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, जो उन्होनें सहज स्वीकार कर लिया। भगवान सुंदरेश्वर और मीनाक्षी देवी के विवाह का उत्सव शुरू हुआ। तीनो लोकों के समस्त यक्ष, गन्धर्व, देवी और देवता इस विवाह में सम्मलित होने के लिए एकत्रित हुए। भगवान विष्णु भी बैकुंठ से विवाह में सम्मलित होने के लिए आ रहे थे, पर देवराज इंद्र के कारण उन्हें कुछ ज्यादा समय लग गया। तब स्थानीय देवता कूडल अझगर के द्वारा विवाह को सम्पन्न कराया। फिर जब तक भगवान विष्णु आये, तब तक विवाह सम्पन्न हो चुका था। इससे भगवान विष्णु रुष्ट होकर अलगार कोइल पर्वत पर चले गये। तब सभी देवताओं के द्वारा मनाये जाने से फिर वापस आकर उन्होनें मीनाक्षी-सुन्दरेश्वरर का पाणिग्रहण संस्कार कराया। इस विवाह का सम्पन्न होना एवं भगवान विष्णु को शांत करने की प्रक्रिया, इन दोनों घटना को मदुरई के सबसे बडे़ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। जिसे चितिरई तिरुविझा या अझकर तिरुविझा, यानि सुन्दर ईश्वर का त्यौहार कहते है।
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर की वास्तुकला :
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर लगभग ४५ एकड़ भूमि में बना है, जिसमें मुख्य मन्दिर की लम्बाई २५४ मीटर एवं चौडा़ई २३७ मीटर है। इस मन्दिर का गर्भगृह 3500 वर्ष पुराना है और इसकी बाहरी दीवारें और अन्य बाहरी दीवारें लगभग 1500-2000 वर्ष पुरानी है। यह मंदिर अपने गोपुरम के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, जो बहुत दूर से भी दिखाई देते है। यह मन्दिर १२ विशाल गोपुरमों से घिरा है, जिसमें ४ बाहरी 160 फीट से अधिक की ऊँचाई पर थे। इनमें दक्षिण द्वार का गोपुरम सबसे ऊँचा है। यह मन्दिर द्रविड़ वास्तुकला को दर्शाता है। श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर, तमिलनाडु के कुछ ऐसे मंदिरों में से एक है। जिसमें चार दिशाओं से चार प्रवेश द्वार है और १००० के करीब स्तम्भ है। जिन पर देवी देवताओं चित्रों के द्वारा दर्शया गया है। इस मन्दिर की संरचना लगभग सन् 1623 से सन् 1655 के बीच बनाई गई थी। मुख्य मन्दिर श्री भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। यह ३ परिसरों से घिरा हुआ है और ४ गोपुरमों से संरक्षित हैं। माता मीनाक्षी देवी का मन्दिर भगवान सुंदरेश्वर के मन्दिर से दक्षिण पश्चिम में स्थित है, जहाँ देवी स्वयं एक काले पत्थर के रूप मे स्थित है। भगवान सुंदरेश्वर का मंदिर केंद्र में स्थित है और दोनों के मंदिरों में सोने के गोपुरम हैं, जो दूर से भी दिखाई देते है। श्री सुंदरेश्वर मंदिर परिसर के भीतर भगवान नटराज का एक मंदिर है और मंदिर के आठ स्तंभों पर देवी लक्ष्मी जी की के चित्र अंकित किये गये है। इस परिसर में कई देवी देवताओं के मंदिर स्थित है। दो मुख्य मंदिर माता मीनाक्षी और भगवान सुन्दरेश्वर के बने है, इसके आलावा भगवान श्री गणेश, मुरुगन देवी, माता लक्ष्मी, माता रुक्मिणी देवी, माँ सरस्वती देवी इत्यादि है। यहां हर शुक्रवार को मीनाक्षी देवी तथा सुन्दरेश्वर भगवान की स्वर्ण प्रतिमाओं को झूले में झुलाते हैं। श्री सुंदरेश्वर मंदिर परिसर के भीतर नटराज का एक मंदिर स्थित है, जिसमें भगवान शिव की नटराज मूर्ति तांडव (विनाश का लौकिक नृत्य) को प्रदर्शित करती है।
दर्शन और पूजन का समय :
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर,भक्तों के दर्शन हेतु सुबह ५ बजे खुलता है और दोपहर १२:३० बजे तक खुलता है। फिर शाम को ४ बजे खुलता है और रात १० बजे बंद होता है।खुलते हैं और दोपहर 12:30 बजे बंद किये जाते हैं। फिर शाम को 4:00 बजे से रात्रि 9:30 तक दर्शन के लिए मंदिर खुले होते हैं। श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर में सुबह ५ बजे से ६ बजे तक थिरुवनंदल पूजा की जाती है, उसके बाद ७:३० बजे तक अन्य पूजाएं और विधियां की जाती है। फिर १०:३० बजे से ११:३० बजे तक थ्रिकालसंधि पूजा की जाती है और रात को ९:३० बजे से १० बजे तक अंतिम पूजा की जाती है।
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर दर्शन :
इस मन्दिर में दो तरह से दर्शन होते है, सामान्य दर्शन और वीआईपी दर्शन। वीआईपी दर्शन भी दो तरह से होते है। ५० रुपये की टिकट से आप माता मीनाक्षी देवी के दर्शन कर सकते है और १०० रुपये की टिकट में श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर मन्दिर के दर्शन कर सकते है। वीआईपी टिकट ले के लिये मन्दिर के अंदर काउंटर बना है। अब आप दर्शन करने के लिए लाइन में लग जाए और धीरे धीरे आगे बढ़ते जाये। मन्दिर के अंदर कई प्रकार की चित्रकारी और चारों तरफ नक्काशी की गई है। मन्दिर के अंदर एक स्वर्ण कलश स्थापित है, इस स्वर्ण कलश की परिक्रमा करने के बाद माता मीनाक्षी देवी के दर्शन करेगें। अब आप गर्भग्रह के अंदर प्रवेश करेगे। यहाँ स्वर्ण वस्त्रों और आभूषणों के श्रंगार से सजी माता मीनाक्षी देवी के दर्शन कर सकते है। माता मीनाक्षी देवी की आँखे मत्स्य की तरह हमेशा खुली होती है। वे अपने भक्तों पर हमेशा कृपा रखती है, उन पर किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नही आने देती है। अब आप माता के गर्भग्रह से बाहर निकलकर भगवान सुंदरेश्वर के दर्शन करने के लिए लाइन में लग जाये। धीरेधीरे आगे बढ़ते हुए गर्भग्रह के अंदर प्रवेश करेगें। गर्भग्रह के अंदर भगवान सुंदरेश्वर की शिवलिंग के चारों ओर तरफ दिये जलते हुए दिखाई देगें। अब आप भगवान शिव के रूप भगवान सुंदरेश्वर के मनमोहक दर्शन करके आशिर्वाद प्राप्त कीजिए।
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मन्दिर का कला संग्रहालय :
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मन्दिर परिसर में एक संग्रहालय बनाया गया है, जो द्रविड़ मूर्ति कला को दर्शाता है। आप १० रुपये का टिकट लेकर इस संग्रहालय को देख सकते है। इस संग्रहालय के अंदर १००० स्तम्भ से निर्मित हाल है, इस हाल में नटराज की मूर्ति को स्थापित किया गया है। हाल में प्रत्येक स्तम्भ पर शिल्पकारी की गई है और काँच के बॉक्स में हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियाँ को संग्रहित की गई है। यहाँ आपको संगीत स्तम्भ भी देखने को मिलेगें, जिनमे कान लगाकर थाप देने से संगीत सुनाई देता है। संगीत स्तंभ मंडप के पास कल्याण मंडप स्थित है। यहाँ शिव और पार्वती के विवाह का चित्राई महोत्सव हर वर्ष अप्रैल के मध्य चैत्र मास के महीने में मनाया जाता है।
स्थानीय व्यंजन :
मदुरई शहर विशेष प्रकार के व्यंजन के लिए प्रसिध्द है, विशेष रूप से मुशी इडली, गोल्डन डोसा, बन परोटा, इडीयप्पम व जिंगरथंडा और परुथी पाल। इस शहर की खास बात है कि अगर आप आधी रात को भी आएगें,तो भी भोजन मिल जाएगा।
जाने का समय :
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर के दर्शन करने के लिए आप साल में कभी भी जा सकते है। भगवान शिव के दर्शन करने के लिए हर दिन शुभ है। फिर भी बारिश के मौसम से बचे, क्योंकि बारिश के मौसम में आंधी तुफान और बारिश के कारण परेशानी हो सकती है। यहाँ मार्च से जून तक अत्यधिक गर्मी पड़ती है। इस समय यहाँ का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। इसलिये सबसे सही समय अक्तूबर से मार्च है। इस मौसम में आपकी यात्रा आरामदायक और आसान रहती है।
रुकने के स्थान :
अगर आप श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर के आस पास रुकना चाहते है, तो आपको मदुरई में कई सारे होटल और धर्मशालाएं उपलब्ध है। धर्मशालाओं में आपको किफायती दाम में कमरे मिल जाएगें। होटल में आपको ए सी व नॉन ए सी दोनों ही विकल्प मिल जाएगें। मदुरई में कमरे एडवांस में बुक करना उचित रहता है, क्योकि ठण्ड के मौसम में यहाँ बहुत भीड़ होती है।
जाने के साधन :
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर के दर्शन करने के लिए आप किसी भी साधन की सेवा ले सकते है। इस मन्दिर के लिए हर एक साधन उपलब्ध है। इस मन्दिर के लिए एयरपोर्ट, ट्रेन और बस तीनो ही सुविधाएँ उपलब्ध है।
हवाई मार्ग द्वारा :
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर के सबसे नजदीक एयरपोर्ट मदुरई एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट देश के सभी प्रमुख एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से आप किसी भी स्थानीय साधन के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
रेल मार्ग द्वारा :
श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर के सबसे निकट रेलवे स्टेशन मदुरई रेलवे जंक्शन है। यह रेलवे स्टेशन देश के लगभग सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इस मन्दिर के लिए रेलवे जंक्शन से नियमित ट्रेनें चलती रहती है। रेलवे जंक्शन से आप स्थानीय साधन के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
सड़क मार्ग द्वारा :
मदुरई, भारत देश के लगभग सभी सड़क मार्गों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर से निकटतम बस स्टॉप पेरियार है, जो १.५ किलोमीटर की दूरी पर है। पेरियार से मीनाक्षी मंदिर के लिए नियमित रूप से बसें चलती हैं। मन्दिर के लिए परिवहन विभाग और प्राइवेट बस, दोनों तरह की सेवा उपलब्ध है। आपको मन्दिर के लिए ए सी और नॉन ए सी, दोनों तरह के विकल्प मिल जाएगें। बस स्टैंड से आप स्थानीय साधन के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
आपको अपने लेख के द्वारा श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर को शेयर कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि आपको ये लेख पसंद आएगा। मेरा ये लेख आपकी यात्रा को आसान और सुगम बनाने में आपकी बहुत मदद करेगा। आप अपने सपरिवार के साथ श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मन्दिर के दर्शन करके आशिर्वाद प्राप्त कर सकते है। अगर आप कोई और जानकारी चाहते है, तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से पूछ सकते है।