भारत देश के तमिलनाडु राज्य के अंतिम छोर में बसा कन्याकुमारी एक खूबसूरत और प्रसिध्द शहर है। कन्याकुमारी में हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का संगम होता है। यहाँ के समुद्री तटों के दृश्य मनोरम और मनमोहक होते है। यह शहर देश के ही नही बल्कि विदेशी यात्रियों को भी आकर्षित करता है। प्राचीन काल से ही यह शहर कला,संस्कृति और सभ्यता व आस्था का केन्द्र रहा है। समुद्र के किनारे दूर दूर तक फैले समुद्री बीच, रंग बिरंगी रेत, सूर्योदय और सूर्यास्त के मनमोहक दृश्य आपकी यात्रा को और खूबसूरत बना देते है। अब हम बात करते है, कुमारी अम्मन मंदिर या कन्याकुमारी मंदिर की। अगर आप कन्याकुमारी की यात्रा पर जा रहे है, तो आपको निश्चित रूप से कुमारी अम्मन मंदिर, जिसे कन्याकुमारी मंदिर भी कहा जाता है, जरूर देखना चाहिये। इस मन्दिर के दर्शन करने के लिए भारत देश के कोने कोने से भक्त आते है। समुद्र तट के किनारे स्थित यह शानदार मंदिर दुनिया के सबसे पवित्र और प्रमुख मंदिरों में से एक है। कुमारी अम्मन मंदिर या कन्याकुमारी मन्दिर ५१ शक्तिपीठों में से एक के रूप में माना जाता है, यह मंदिर देवी कन्या कुमारी का घर है, जिसे वर्जिन देवी के रूप में जाना जाता है। कहते है कि यह मन्दिर भगवान शिव से विवाह करने के लिए आत्मदाह करने वाली कुंवारी देवी पार्वती के अवतार के लिए जाना जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव और देवी कन्याकुमारी के बीच शादी नहीं हुई थी, इसलिए कन्याकुमारी ने कुंवारी रहने का फैसला किया। यह भी कहा जाता है कि शादी के लिए जो अनाज इकट्ठा किया गया था, उसे बिना पकाए छोड़ दिया गया और वे पत्थरों में बदल गए। वर्तमान समय में, भक्त उन पत्थरों को खरीद सकते है, जो अनाज की तरह दिखते हैं। मंदिर को आठवीं शताब्दी में पंड्या सम्राटों द्वारा स्थापित किया गया था और बाद में इसका विजयनगर, चोल और नायक राजाओं द्वारा पुन:निर्माण किया गया।
कन्याकुमारी मंदिर का इतिहास :
यह मन्दिर कुमारी अम्मन या भगवती अम्मन देवी को समर्पित है। इस मन्दिर का प्रमुख आकर्षक देवी के हीरे की नथ है। नाक की नथ की चमक से सम्बंधित कई कथायें है। पुराणों के अनुसार नाक की नथ किंग कोबरा से प्राप्त की गई। दूसरी कथा के अनुसार समुद्र में नौकायन करने वाले कुछ जहाजों ने माणिक की चमक को प्रकाश के रूप में समझ लिया और पास की चट्टानों से टकराते हुए बर्बाद हो गए। इस कारण से, कुमारी अम्मन मंदिर के पूर्वी ओर के द्वार को बंद रखा जाता है। इस मन्दिर के इतिहास का कई प्राचीन शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। महान हिंदू महाकाव्य महाभारत और रामायण में, कुमारी अम्मन मंदिर का उल्लेख किया गया है। यहां तक कि मणिमक्कलई और पूरनानूरु जैसे संगम कार्यों में भी इस मंदिर का उल्लेख है।
कुमारी अम्मन (कन्याकुमारी) मंदिर की वास्तुकला :
यह मन्दिर लगभग ३००० साल पुराना है, जो एक प्रभावशाली वास्तुकला दर्शाता है। यह मन्दिर त्रावणकोर साम्राज्य का एक हिस्सा है, जो समुद्र के किनारे स्थित है। मन्दिर में कन्या देवी पूर्व की ओर मुख किये हुए है और मूर्ति को माला के साथ एक युवा लड़की के रूप में दिखाया गया है। कन्या देवी के नाक की नथ अपनी असाधारण चमक के लिए जानी जाती है। इस नथ से जुड़े कई किस्से है। मन्दिर पत्थर की मजबूत दीवारों से घिरा हुआ है और मन्दिर का मुख्य द्वार, उत्तरी द्वार से होकर जाता है। मन्दिर का पूर्वी द्वार अधिकांश दिनों पर बंद रखा जाता है। यह केवल विशेष अवसरों और दिनों पर ही खोला जाता है, जैसे कि वृश्चिकम, एडवाम और कार्किडम के महीने के दौरान अमावस्या के दिन। मंदिर परिसर में भगवान सूर्यदेव, भगवान गणेश, भगवान अयप्पा स्वामी, देवी बालासुंदरी और देवी विजया सुंदरी को समर्पित विभिन्न मंदिर हैं। मंदिर के अंदर कुआं है जहाँ से देवी के अभिषेक के लिए जल का उपयोग किया जाता है। इसे मूला गंगा थीर्थम के नाम से जाना जाता है।
कन्याकुमारी मन्दिर की पौराणिक कथा :
शिव महापुराण के अनुसार प्राचीन काल में धरती पर बाणासुर नाम का असुर था। बाणासुर भगवान शिव का परम भक्त था और उसने कठिन तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। फिर उसने भगवान शिव से वर मांगा कि केवल आपकी एक कुंवारी कन्या के द्वारा ही उसकी मत्यु हो सके। भगवान शिव ने उसे वर दे दिया, वर मिलने के बाद उसने धरती पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी देवताओं ने माँ आदि शक्ति से प्रार्थना की। माँ आदि शक्ति ने अपने दिव्य अंश से एक कन्या को उत्पन्न किया। आदि शक्ति द्वारा कन्या ने उस समय भारत के राजा के घर जन्म लिया और राजा ने उसका नाम कन्या रखा। इस कन्या को भगवान शिव में बहुत आस्था थी। उसने भगवान शिव से विवाह करने के लिए कठिन तपस्या की। भगवान शिव उसकी तपस्या को देखकर प्रसन्न हुए और विवाह के लिये भी तैयार हो गए। भगवान शिव की शादी की तैयारियां शुरू हो गयी और मुहूर्त के अनुसार भगवान शिव अपने गणों के साथ बारात लेकर कैलाश पर्वत से चल दिए। बारात आधी रात को निकली, ताकि सुबह होने पर कन्याकुमारी पहुँच जाये। इस विवाह से सभी देवी देवता चिंतित हो गये। क्योंकि देवी देवता जानते थे कि अगर भगवान शिव का विवाह हो गया, तो राक्षस बाणासुर का वध नहीं को पायेगा। तब सभी देवी देवताओं ने इस विवाह को रोकने का निश्चय किया और यह जिम्मेदारी महामुनि नारदजी को दी। भगवान शिवजी की बारात विश्राम करने के लिए सुचिन्द्रम नामक स्थान पर रुकी। रात को नारदजी ने मुर्गे की बांग करवा दी। सभी को लगा कि सुबह होने वाली है और विवाह का मुहूर्त निकल गया है, इसलिए बारात कैलाश पर्वत वापस आ गयी। इसी बीच बाणासुर को कन्या की सुंदरता के बारे में पता चला और उसने विवाह करने की इच्छा जताई। तब क्रोध में आकर कन्या देवी ने बाणासुर से युद्ध लड़ने को कहा और कहा कि यदि वाणासुर उन्हें हरा देता है तो वे विवाह कर लेंगी। तब देवी कन्या और वाणासुर के बीच बहुत घमासान युद्ध हुआ और देवी कन्या ने बाणासुर का वध कर दिया। लेकिन देवी कन्या हमेशा के लिए कुंवारी रह गई। इसलिए दक्षिणी छोर का नाम कन्याकुमारी पड़ा और जिस स्थान पर देवी कन्या विवाह विवाह होना था, उसी स्थान पर देवी कन्याकुमारी का मंदिर स्थित है। क्योंकि यह मन्दिर कुमारी कन्या के लिए बनाया गया था, इसलिए यह कन्याकुमारी माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कहते है कि भगवान परशुराम ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
कुमारी अम्मन (कन्याकुमारी) मंदिर का समय :
यह मन्दिर सुबह ४:३० बजे खुलता है और रात ८ बजे तक खुला रहता है। इस मन्दिर में पूजा केरल के मंदिरों की तरह तन्त्रसमुच्चयम के अनुसार की जाती है। यह मन्दिर भले ही तमिलनाडु में स्थित है,लेकिन कुमारी अम्मन मंदिर को केरल मंदिर माना जाता है क्योंकि यह एक समय में त्रावणकोर राज्य का हिस्सा था। केरल के अधिकांश भागवती मंदिरों की तरह पश्चिमी द्वार में चमक खोली जाती है। पुजारी अभी भी केरल ब्राह्मण परिवारों से चुने जाते हैं और वे अब भी केरल में प्रतिदिन पाँच पूजा के प्रकारों का पालन करते हैं।
कन्याकुमारी माता मंदिर दर्शन :
माता कन्याकुमारी मन्दिर, ५१ शक्तिपीठों में से एक है। आप पहले मन्दिर के मुख्य द्वार पर पहुचेगें। मन्दिर में प्रवेश करते समय पुरुष को ऊपर के वस्त्र उतारकर और महिलाओं के लिये कोई ड्रेस कोड नही है। यहाँ भीड़ बहुत होती है, इसलिये आप लाइन में लग जाये और धीरेधीरे आगे बड़े। मंदिर के गर्भ गृह में आपको सुंदर वस्त्र पहने हुए आकर्षक चमकते हुए आभूषण से सजी अम्मान माता के दर्शन होंगे। गर्भ गृह में केवल दिए जले होंगे। देवी का यह स्वरूप अत्यंत दिव्य तथा भव्य है। देवी के एक हाथ में माला है। उनकी नाक में जुड़े हीरे की चमक दियों की रौशनी में अति सुन्दर दिखती है। विशेष पर्वों पर कन्याकुमारी माता का कई प्रकार के रत्नों और आभूषण से श्रंगार होता है 1892 में स्वामी विवेकानंद ने यहाँ आकर माँ के दर्शन किये और पूजा अर्चना की थी ।
कन्याकुमारी मंदिर के त्यौहार :
वैसे तो पर्यटक सालभर में कभी भी कन्याकुमारी मंदिर की यात्रा के लिए जा सकते हैं लेकिन वार्षिक उत्सवों के दौरान कन्याकुमारी मंदिर का दौरा करना एक अलग अनुभव हो सकता है।
वैसाखी महोत्सव :
कन्याकुमारी मंदिर का सबसे प्रमुख और प्रसिध्द त्यौहार है। यह त्यौहार 10 दिन तक मनाया जाता है। यह त्यौहार मई और जून के महीनों में मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान, देवी कन्या की मूर्ति को भी त्यौहार के विभिन्न जुलूसों में भाग लेती है। यह त्योहार मई और जून के महीनों के बीच होता है।
चित्रा पूर्णिमा उत्सव :
यह त्यौहार मई में पूर्णिमा के दिन होता है।
कलाभम त्यौहार :
यह त्यौहार जुलाई और अगस्त के महीनों के बीच में होता है। यह त्यौहार तमिल महीने के अनुसार मनाया जाता है। तमिल महीने के आखिरी शुक्रवार को देवता को चंदन का लेप लगाया जाता है
नवरात्रि उत्सव :
यह त्यौहार पूरे ९ दिन मनाया जाता है और सितंबर और अक्टूबर के महीनों में मनाया जाता है। विभिन्न संगीत कलाकार नवरात्रि मंडपम में देवी देवता को अपना कौशल दिखाते है। नवरात्रि में पूरे नौ दिन देवी की एक छवि की पूजा की जाती है और विजयादशमी पर त्यौहार का 10 वां दिन होता है, जब बाणासुर का सर्वनाश किया जाता है।
दर्शनीये स्थल :
कन्याकुमारी मंदिर के आस पास कई ऐसे दर्शनीये स्थल जिन्हें आप घूम सकते है। ये सभी दर्शनीये स्थल एक दूसरे के साथ है।जैसे भद्रकाली मंदिर, कन्याकुमारी के सूर्योदय व सूर्यास्त, विवेकानन्द स्मारक शिला (विवेकानंद रॉक मेमोरियल), तिरुवल्लुवर प्रतिमा, तीन समुद्रों का संगम, गाँधी मंडप, सुचिन्द्रम, पद्मनाभपुरम महल, नागराज मंदिर, उदयगिरी किला, कोरटालम झरना, ओलकरुवी झरना, सुनामी स्मारक इत्यादि।
स्थानीय खरीदारी :
आप यहाँ से विभिन्न रंगों के रेत के पैकेट खरीद सकते है। यहां से सीप और शंख के अलावा प्रवाली शैलभित्ती के टुकड़ों की खरीददारी की जा सकती है। साथ ही केरल शैली की नारियल जटाएं और लकड़ी की हैंडीक्राफ्ट भी खरीदी जा सकती हैं।
रुकने के स्थान :
कन्याकुमारी में कई सारे होटल और रिसोर्ट उपलब्ध है, यहाँ आपको धर्मशालायें और गेस्ट हाउस भी मिल जाएगें। जिनमे आपको किफायती दाम में कमरे मिल जाएगें। आप ऑनलाइन वेबसाइट से होटल के AC और NON AC रूम बुक कर सकते है। रुकने के लिये कन्याकुमारी में विवेकानंद केंद्र है, जहाँ नाममात्र शुल्क में कमरे मिल जाएगें है। आप विवेकानंद केंद्र में एडवांस में कमरे बुक कर सकते है। कन्याकुमारी में रूम एडवांस में बुक करना उचित होगा।
जाने का समय :
कन्याकुमारी मन्दिर के दर्शन करने के लिए कभी भी जा सकते है। दर्शन करने के लिए हर दिन अच्छा है। लेकिन बारिश के मौसम से बचना चाहिए। क्योंकि बारिश के मौसम में आंधी, तुफान और बारिश की वजह से परेशानी हो सकती है। कन्याकुमारी का मुख्य आकर्षण सूर्य उदय और सूर्य अस्त है। बारिश के मौसम में बादलों के कारण आप सूर्योदय और सूर्यास्त का आनंद नहीं के पाएंगे। गर्मियों में बहुत तेज गर्मी पड़ती है। इसलिये सबसे सही समय अक्तूबर से अप्रैल है। इस मौसम में आपकी यात्रा सुखद और आरामदायक रहेगी।
जाने के साधन :
कन्याकुमारी मन्दिर पहुँचने के लिये आप किसी भी साधन की सेवा ले सकते है। आजकल हवाई मार्ग, रेल मार्ग या फिर सड़क मार्ग, इनमे से आप किसी भी साधन के द्वारा कन्याकुमारी पहुँच सकते है।
हवाई मार्ग द्वारा :
कन्याकुमारी मन्दिर के सबसे निकट एयरपोर्ट तिरुवनंतपुरम, त्रिवेंद्रम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। इन दोनों हवाई अड्डा से कन्याकुमारी की दूरी लगभग १०५ किलोमीटर व ९० किलोमीटर है। ये दोनों हवाई अड्डे, देश के सभी प्रमुख हवाई अड्डों से अच्छी तरह से जुड़े हुए है। हवाई अड्डों से आप बस, टैक्सी या फिर कैब के द्वारा कन्याकुमारी पहुँच सकते है।
रेल मार्ग द्वारा :
कन्याकुमारी मन्दिर के सबसे निकट रेलवे स्टेशन कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन है। कन्याकुमारी मन्दिर से यह रेलवे स्टेशन लगभग १.५ किलोमीटर के आस पास है। यह रेलवे स्टेशन देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और भारत के सभी प्रमुख शहरों से बड़ी संख्या में ट्रेनें कन्याकुमारी के लिये चलती रहती है। कन्याकुमारी एक्सप्रेस, हिमसागर एक्सप्रेस, कन्याकुमारी हावड़ा एक्सप्रेस, तिरुकुरल एक्सप्रेस, बैंगलोर एक्सप्रेस और लक्ष्यद्वीप एक्सप्रेस और कई ऐसी ट्रेनें है, जिनके द्वारा आप कन्याकुमारी पहुँच सकते है। रेलवे स्टेशन से आप कैब, टैक्सी या ऑटो के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
सड़क मार्ग द्वारा :
कन्याकुमारी, देश के सभी प्रमुख सड़क मार्गों के द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। कन्याकुमारी के लिए सरकारी और निजी बस सेवाओं का बड़ा नेटवर्क है, जो कन्याकुमारी को देश के कई हिस्सों से जोड़ कर रखता है। यहाँ आपको ए सी व नॉन ए सी दोनों तरह के विकल्प मिल जाएगें। परिवहन विभाग की बसें नियमित रूप से चलती रहती है। कन्याकुमारी मन्दिर से बस स्टेशन मात्र १ किलोमीटर के आस पास है। आप पैदल या ऑटो रिक्शा के द्वारा मन्दिर पहुँच सकते है।
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